राजस्थान के टोंक जिले में स्थित देॉली-उनियारा विधान सभा उपचुनाव के दौरान एक अप्रिय घटना ने राजनीतिक माहौल को गरमा दिया। स्वंतत्र उम्मीदवार नरेश मीणा, जो कांग्रेस के बागी उम्मीदवार भी रहे हैं, पर उपखंड मजिस्ट्रेट (एसडीएम) अमित चौधरी को थप्पड़ मारने का गंभीर आरोप लगा। इस घटना का कारण बताते हुए मीणा का दावा है कि एसडीएम चौधरी ने मतदान प्रक्रिया के दौरान स्थानीय निवासियों को परेशान किया, जिसमें महिला, उसके पति और एक शिक्षक के साथ दुर्व्यवहार शामिल है। यह भी आरोप था कि एसडीएम ने मतदान के दौरान लोगों पर दवाब डालकर उन्हें धमकाया।

इस घटना के बाद, चुनावी माहौल में उबाल आ गया और नरेश मीणा के समर्थकों ने सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन किया। इसके चलते स्थिति बिगड़ गई और हिंसा की आग भड़क उठी। सरकारी संपत्ति का नुक़सान हुआ और कई वाहन जला दिए गए। बड़ी संख्या में पुलिस और विशेष बलों को शांति और व्यवस्था स्थापित करने के लिए उतरना पड़ा। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच तीखी झड़पें हुईं और कई लोगों को गिरफ्तार किया गया। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए विशेष टास्क फोर्स (एसटीएफ) की इकाइयों को भी बुलाना पड़ा।

विधायिकी की दुनिया में नरेश मीणा अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। उनकी राजनीतिक यात्रा विवादों से भरपूर रही है। नरेश मीणा ने राजनीतिक पर्दापण 2000 के दशक के उत्तरार्ध में किया और युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ी। उनके खिलाफ 23 मामले दर्ज हैं, जिनमें से पाँच में कार्रवाई लंबित है। उनकी छवि ‘छोटा किरोड़ी’ के रूप में उभर कर आई है।

पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के समर्थक और बीजेपी नेता किरोड़ी लाल मीणा से प्रेरणा लेते हुए, नरेश मीणा ने कई राजनीतिक गतिविधियों में भाग लिया है। उनके समर्थकों का मानना है कि उनकी गिरफ्तारी ने राजनीतिक पूर्वाग्रहों को उजागर किया। उनकी गतिविधियों ने चुनावी समीकरण को प्रभावित किया है। यह घटनाक्रम उनके भविष्य के राजनीतिक सफर पर भी असर डाल सकता है।

मीणा की गिरफ्तारी के विरोध ने राजस्थान प्रशासनिक सेवा (आरएएस) संघ को आंदोलन करने के लिए प्रेरित किया, जिससे सरकारी कार्यों में व्यवधान पैदा हुआ। इस घटना के विरोध के चलते संघ ने कलम छोड़ कार्यक्रम का आयोजन किया। मीणा पर कुल चार मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें सार्वजनिक कार्य में बाधा डालने और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने के आरोप शामिल हैं।

यह घटना सामान्य चुनावी प्रक्रिया के दौरान हो रही अनियमितताओं और दुरुपयोग का एक उदाहरण है, जिससे राजनीतिक माहौल में तनाव और बढ़ गया है। इस मामले से प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हुए हैं। सरकारी तंत्र और राजनेताओं के बीच पारस्परिक विरोधाभास, जो अक्सर लोकतांत्रिक प्रणाली में आक्षेपों का कारण बनता है, इससे पहले भी कई मामलों में देखा गया है। नरेश मीणा की गिरफ्तारी के बाद मामले ने राज्य प्रशासन को जाँच करने के लिए मजबूर कर दिया है।

टोंक जिले की स्थितियों ने न केवल स्थानीय राजनीति को प्रभावित किया है, बल्कि राज्य भर में इसकी गूंज सुनाई दी है। चुनावों के दौरान ऐसी घटनाएं सामान्य नागरिकों के मन में कई सवाल खड़े करती हैं। लोगों का विश्वास लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर डगमगाने लगता है और चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं। नरेश मीणा का समर्थकों का इस कदर सड़कों पर उतरना उनकी राजनीतिक पैठ का एक प्रमाण माना जा सकता है।

यह घटना यह दर्शाती है कि स्थानीय चुनावों में हिंसा और तनाव कोई नई बात नहीं है। प्रशासन और पुलिस के लिए यह चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है कि वे किस तरह से ऐसी स्थिति से निपटें। सामान्य जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करना, उनके अधिकारों की रक्षा करना और निष्पक्ष चुनाव की प्रक्रिया को बनाए रखना प्रशासन की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।