गोवर्धन पूजा का महत्व और धार्मिक अभिप्राय
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गोवर्धन पूजा को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह त्योहार भगवान श्री कृष्ण द्वारा देवराज इन्द्र के प्रकोप से वृंदावन को बचाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार, जब इन्द्र ने भारी वर्षा के कारण लोगों का जीवन खतरे में डाल दिया था, तब भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर सम्पूर्ण गाँव को आश्रय प्रदान किया। इसी घटना की स्मृति में गोवर्धन पूजा का आयोजन होता है। इसे 'अन्नकूट' पूजा के नाम से भी जाना जाता है, जहाँ कई प्रकार के व्यंजनों का भोग भगवान को अर्पित किया जाता है।
पूजा की विधि और तैयारी
गोवर्धन पूजा की शुरुआत घर के आँगन में गोबर से छोटे-से गोवर्धन पर्वत का निर्माण कर होती है। इसे फूलों से सजाया जाता है और इसके समीप भगवान कृष्ण की एक छोटी मूर्ति को स्थापित किया जाता है। विभिन्न प्रकार के फल-फूल और मिठाइयाँ प्रसाद के रूप में भगवान को अर्पित की जाती हैं। खासकर, 56 प्रकार के भोग तैयार करके अर्पण किया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, सुबह 6:34 से 8:46 और दोपहर 3:23 से 5:35 तक के दो शुभ मुहूर्त होते हैं, जिनमें पूजा करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। विशेष रूप से 'प्रतिपदा' तिथि, जो 1 नवंबर 2024 की शाम 6:16 बजे से 2 नवंबर 2024 की रात 8:21 बजे तक है, पूजा के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है।
पूजा विधान और धार्मिक अनुष्ठान
पूजा विधी में भगवान श्री कृष्ण के साथ गोवर्धन पर्वत और अन्य देवी-देवताओं के साथ-साथ गाय और बैल की भी पूजा की जाती है। आरती के दौरान पंचामृत का प्रयोग किया जाता है। पंचामृत में दूध, घी, शक्कर, दही और शहद मिलाकर उसका प्रयोग होता है। भक्तगण कहते हैं कि यह पूजा व्यक्तिगत और पारिवारिक समृद्धि और सुख-समृद्धि में वृद्धि लाती है।
इतिहास और संस्कृति में गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा की कथा जो इससे जुड़ी है, भगवान कृष्ण और राजा बली की दैविक कथाओं से भी सम्बन्धित है। भगवान विष्णु के वामन अवतार ने राजा बली को पराजित कर पाताल लोक भेजा था, लेकिन देवत्व से प्रसन्न होकर उन्हें इस विशेष दिन पर पृथ्वी पर आने का वरदान मिला। गोवर्धन पूजा इसी ऐतिहासिक और पौराणिक घटना की स्मृति में विशेष रूप से उत्तर भारत में भव्य रूप से मनाई जाती है।
कुल मिलाकर, गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भक्तगणों को भगवान श्री कृष्ण के प्रति उनकी श्रद्धा और समर्पण व्यक्त करने का अवसर देती है। इसमें स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का भी समावेश होता है।
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