ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमेटी ने वक्फ विधेयक में किए 14 महत्वपूर्ण संशोधन
ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमेटी (जेपीसी) ने हाल ही में वक्फ संशोधन विधेयक का अनुमोदन किया है, जिसमें कुल 14 संशोधन किए गए हैं। इनमें से कुछ संशोधन मौजूदा कानून को अधिक मजबूत और प्रभावी बनाने के लिए किए गए हैं। इससे पहले यह बिल अगस्त में संसद के समक्ष रखा गया था। एनडीए सदस्यों द्वारा प्रस्तावित इन संशोधनों को स्वीकार कर लिया गया है। इसके विपक्षी सदस्यों ने भी कुछ सैकड़ों संशोधन प्रस्तावित किए थे, लेकिन वे सभी मतदान में खारिज कर दिए गए।
विपक्ष का आरोप: नियमों का पालन नहीं
विपक्षी दलों के सदस्यों ने आरोप लगाया है कि बैठक के दौरान नियमों का पालन नहीं किया गया। तृणमूल कांग्रेस सांसद कल्याण बनर्जी, कांग्रेस सांसद इमरान मसूद और डीएमके सांसद ए राजा ने दावा किया कि जेपीसी अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने प्रक्रिया को 'बुलडोज' कर दिया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि संशोधनों पर बिना किसी सार्थक चर्चा के सीधे मतदान कराया गया।
संशोधनों से उत्पन्न विवाद
विपक्ष के अनुसार, यह विधेयक बहुत महत्वपूर्ण है और इसके माध्यम से 'वक्फ बाय यूज़र' जैसी धाराओं को खत्म करना जरूरी है। मौजूदा कानून में यह प्रावधान था कि यदि वक्फ संपत्तियों का धार्मिक प्रयोजनों के लिए उपयोग हो रहा है, तो उन्हें चुनौती नहीं दी जा सकेगी। इससे ऐसा लग रहा है कि सरकार धार्मिक मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित कर रही है।
इसके अलावा, अल्पसंख्यक मुस्लिम संप्रदायों जैसे दाऊदी बोहरा और आगाखानी को वक्फ बोर्ड की अधिसूचना से बाहर करने वाले संशोधन को भी अपनाया गया है। मुख्य रूप से सुन्नी नियंत्रण में जा रहे वक्फ बोर्ड्स से ये समूह बाहर रखे गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच सकता है मुद्दा
विपक्ष का कहना है कि यदि विधेयक कानून बन जाता है, तो वे इसका विरोध करने के लिए सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं। उनका मानना है कि इस विधेयक के माध्यम से अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों का हनन हो रहा है।
एक अन्य महत्वपूर्ण संशोधन राज्य सरकार के एक अधिकारी के रूप में वक्फ संपत्ति की पहचान के लिए जिला कलेक्टर के स्थान पर एक अन्य अधिकारी की नियुक्ति को लेकर है। इसका उद्देश्य प्रशासनिक प्रक्रिया को सरल बनाना हो सकता है, लेकिन यह भी विवादास्पद हो सकता है।

संवेदनशील मुद्दों पर सुधारवादी जटिलताएं
जेपीसी द्वारा अनुमोदित इन संशोधनों का अंतिम मसौदा रिपोर्ट 29 जनवरी को जारी किया जा सकता है। अब देखना यह होगा कि इन संशोधनों का असली प्रभाव क्या होगा और क्या यह विधेयक संसद की अन्य प्रक्रियाओं को सुरक्षित पारित हो पाएगा या नहीं। विधेयक में तय किया गया है कि राज्य वक्फ बोर्ड्स और केंद्रीय वक्फ परिषद में कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्य होने चाहिए।
यह नया विधेयक विशेष रूप से उस प्रोविजन को लेकर विवाद में है, जिसमें अल्पसंख्यक मुस्लिम गुटों को हटाने की बात कही गई है। इसके आलावा, विभिन विपक्षी पार्टियाँ मामलें की गंभीरता को देखते हुए अपने असंतोष को स्पष्ट कर रही हैं और ऐसा दावा कर रही हैं कि यदि इसे प्रभावी किया गया, तो वे इसे अदालत में चुनौती देंगे। इसके समक्ष कानूनी लड़ाई की संभावनाएं भी है।
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