खेती की जेब से सीधा जुड़ा फैसला—देश में ट्रैक्टर अब सस्ते होंगे। सरकार ने 3 सितंबर 2025 को जारी अधिसूचनाओं के जरिए ट्रैक्टर पर जीएसटी 12% से घटाकर 5% कर दिया, और टायर-पार्ट्स पर 18% से 5%। इतना व्यापक बदलाव कृषि क्षेत्र में कम ही देखने को मिलता है। नीति का मकसद साफ है: किसानों का खर्च कम करना, मशीनों की पहुंच बढ़ाना, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को तेज रफ्तार देना। यही वजह है कि इसे GST रिफॉर्म 2025 कहा जा रहा है।
क्या बदला: दरें और दायरा
ट्रैक्टर दरों में कटौती सबसे बड़ी खबर है। लेकिन राहत सिर्फ ट्रैक्टर तक सीमित नहीं—जोड़े जाने वाले टायर, बैटरी से लेकर गियरबॉक्स-पावरट्रेन जैसे पार्ट्स भी 18% से सीधे 5% पर आ गए। इससे रिपेयर, सर्विस और स्पेयर की लागत भी घटेगी, यानी चलाने-सम्हालने का खर्च कम।
खेती में इस्तेमाल होने वाली अधिकांश मशीनें—जुताई, भूमि तैयारी, बुवाई, निराई-गुड़ाई, कटाई और मड़ाई—अब 12% से घटकर 5% स्लैब में हैं। यानी रोटावेटर, हैरो, सीड-ड्रिल, प्लांटर, थ्रेशर, रीपर, बैलर जैसे उपकरणों पर बिल सीधे हल्का। खेत के लिए जरूरी इनपुट्स—खास बायो-पेस्टीसाइड और माइक्रोन्यूट्रिएंट—भी 12% से 5% पर। जल संरक्षण के उपकरण—ड्रिप इरिगेशन और स्प्रिंकलर—अब 5% स्लैब में हैं, जिससे पानी की बचत वाली तकनीक अपनाना आसान होगा।
किराने की टोकरी में भी असर दिखेगा। दूध और चीज पर जीएसटी खत्म किया गया है। मक्खन, घी और मिल्क कैन पर दरें घटाई गई हैं, जिससे डेयरी किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ होगा। यह बदलाव दुग्ध वैल्यू-चेन—दूध खरीद, कलेक्शन, कोल्ड-चेन और प्रोसेसिंग—को थोड़ा और प्रतिस्पर्धी बनाएगा।
इन कटौतियों के साथ सरकार ने उर्वरक उद्योग के इनपुट—सल्फ्यूरिक एसिड और अमोनिया—को 18% से 5% पर लाकर लागत दबाव कम किया है। नतीजा? उर्वरक कंपनियों के निर्माण-खर्च घटेंगे, जिससे कीमतें स्थिर रखने और सरकार के सब्सिडी बिल पर भी सकारात्मक असर पड़ सकता है। नवीकरणीय ऊर्जा उपकरणों और उनके कंपोनेंट्स पर भी कटौती की गई है, ताकि खेतों में सोलर पंप, छोटे कोल्ड-स्टोरेज और ड्रायर जैसी ग्रीन तकनीक तेज़ी से फैल सके।
कई लोग पूछते हैं—रेट 0% क्यों नहीं? जवाब टैक्स क्रेडिट चेन में है। 5% रेट रखने से निर्माता और डीलर इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) लेते रहेंगे। अगर दर 0% कर दी जाती, तो पहले से लिए गए आईटीसी को रिवर्स करना पड़ता, जिससे उत्पादन-लागत बढ़कर वहीं किसान पर लौट आती। 5% का यह बफर सप्लाई-चेन को साधे रखता है और कीमतें टिकाऊ ढंग से नीचे रखता है।
- ट्रैक्टर: 12% से 5%
- ट्रैक्टर टायर व पार्ट्स: 18% से 5%
- मिट्टी तैयारी, बुवाई, कटाई-मड़ाई की मशीनें: 12% से 5%
- बायो-पेस्टीसाइड व माइक्रोन्यूट्रिएंट: 12% से 5%
- ड्रिप व स्प्रिंकलर: 12% से 5%
- दूध व चीज: जीएसटी शून्य
- घी, मक्खन, मिल्क कैन: घटाई गई दरें
- सल्फ्यूरिक एसिड व अमोनिया: 18% से 5%
- नवीकरणीय ऊर्जा उपकरण/कंपोनेंट्स: घटाई गई दरें
किसानों की जेब पर असर और बाजार की चाल
अब सबसे अहम—गोदाम से खेत तक कीमत कैसे गिरेगी? ट्रैक्टर पर टैक्स 12% से 5% हुआ है। यानी टैक्स हिस्से में 7 प्रतिशत अंक की कटौती। अगर बेस-प्राइस वही रहे, तो ऑन-इनवॉइस कीमत करीब 6–7% तक नीचे आ सकती है। पार्ट्स पर 18% से 5% होने से टैक्स में 13 प्रतिशत अंक की गिरावट है—इनवॉइस स्तर पर करीब 11–12% का झटका नीचे की ओर।
सरकारी आकलन के मुताबिक, 9 लाख रुपये की कीमत वाले ट्रैक्टर पर किसान को लगभग 65,000 रुपये तक की बचत मिल सकती है। अलग-अलग हॉर्सपावर (HP) सेगमेंट में यह फायदा इस तरह दिखेगा—35 HP वाले ट्रैक्टर पर करीब 41,000 रुपये, 45 HP पर लगभग 45,000 रुपये, 50 HP पर लगभग 53,000 रुपये और 75 HP पर लगभग 63,000 रुपये तक। कुल मिलाकर, ट्रैक्टर खरीद में 25,000 से 63,000 रुपये की रेंज में राहत आमतौर पर देखने को मिलेगी। असल बचत डीलर डिस्काउंट, बीमा/एसेसरीज़ और फाइनेंसिंग शर्तों पर भी निर्भर करेगी।
इम्प्लीमेंट्स की बात करें तो रोटावेटर, सीड-ड्रिल, मल्चर, स्ट्रॉ-रीपर, टिलर जैसी मशीनों की इनवॉइस कीमत 12% से 5% जीएसटी आने के बाद सामान्यतः 6–7% तक नीचे जानी चाहिए। इससे छोटे और सीमांत किसानों के लिए ‘एक्सेसरी’ मानी जाने वाली मशीनें भी अब ‘जरूरी निवेश’ की रेंज में आ सकती हैं। रिपेयर-मेंटेनेंस में इस्तेमाल होने वाले पार्ट्स—फिल्टर, बेल्ट, टायर—की लागत घटने से वार्षिक रख-रखाव का बिल हल्का होगा।
डेयरी में राहत का सीधा असर ग्रामीण नकदी प्रवाह पर पड़ेगा। दूध और चीज पर जीएसटी हटने व घी-बटर पर दर घटने से सहकारी समितियों, छोटे प्रोसेसर और सेल्फ-हेल्प ग्रुप का मार्जिन सुधरेगा। मिल्क कैन जैसी आधारभूत चीजों पर कर कटौती से चिलिंग-लॉजिस्टिक्स की लागत भी कम पड़ सकती है। इससे दूध संग्रहण और गुणवत्ता सुधार की कोशिशों को रफ्तार मिलेगी।
पानी की किल्लत जहां-जहां है, वहां ड्रिप और स्प्रिंकलर पर 5% जीएसटी बड़ी बात है। शुरुआती निवेश घटेगा तो किसान माइक्रो-इरिगेशन अपनाने के लिए ज्यादा तैयार होंगे। कम पानी में ज्यादा पैदावार का लक्ष्य पाने के लिए यह जरूरी कड़ी है—बीज, खाद और मशीनरी के साथ पानी की दक्षता अब लागत के पक्ष में खड़ी दिखती है।
फाइनेंसिंग मोर्चे पर भी असर साफ है। एक्स-शोरूम कीमत कम होने से लोन की मूल राशि घटेगी। पांच से सात साल के सामान्य टेन्योर में EMI कुछ सौ से लेकर हजार-दो हजार रुपये महीना तक कम हो सकती है—यह बैंक/NBFC की ब्याज दर और डाउन पेमेंट पर निर्भर करेगा। खेतों के लिए पूंजीगत निवेश (कॉय कैपेक्स) का यह सस्ता होना ट्रैक्टर फाइनेंस, इम्प्लीमेंट लोन और ‘बंडल ऑफर्स’ को भी ज्यादा आकर्षक बना देगा।
निर्माताओं और डीलरों के लिए 5% दर का सबसे बड़ा फायदा आईटीसी का कायम रहना है। उत्पादन में लगने वाले स्टील, रबर, इलेक्ट्रॉनिक्स, पेंट, पैकेजिंग—इन सब पर दिए गए जीएसटी का क्रेडिट मिलता रहेगा। 0% होता तो आईटीसी रिवर्सल का झंझट कीमतें बढ़ा देता। अब लागत के साथ नकदी प्रवाह (कैश फ्लो) भी ज्यादा संतुलित रहेगा। हां, पुराना स्टॉक जिसका टैक्स 12%/18% पर कटा है, उसे री-प्राइस करना होगा, और खरीदारों को नए इनवॉइस पर कम दर का फायदा मिलना चाहिए।
क्या कीमतें पूरी तरह नीचे आएंगी? नियम के मुताबिक, कर कटौती का लाभ उपभोक्ता तक पहुंचना चाहिए। बाजार में आमतौर पर शुरुआत में ‘पार्ट-पास-थ्रू’ दिखता है—यानी कुछ हिस्से की कटौती तुरंत, बाकी प्रतिस्पर्धा और सीजनल मांग के साथ। खरीदारों के लिए सही तरीका है—डीलर से रिवाइज्ड कोटेशन लें, पुरानी/नई सप्लाई के हिसाब से डिस्काउंट अलग-अलग दिखाने को कहें, और फाइनेंस कंपनी से नई एक्स-शोरूम कीमत पर EMI की गणना करवाएं।
पुराने ट्रैक्टरों की सेकेंड-हैंड कीमत पर भी असर पड़ सकता है। जब नया ट्रैक्टर सस्ता हो, तो इस्तेमालशुदा ट्रैक्टर की वैल्यू आमतौर पर थोड़ी नरम पड़ती है। ट्रैक्टर रेंटल मार्केट में भी रेट्स कुछ कम हो सकते हैं, क्योंकि ऑपरेटर का कैपिटल कॉस्ट घटेगा।
उर्वरक इनपुट्स पर 18% से 5%—यह बदलाव उत्पादन-लागत घटाकर सप्लाई चेन में राहत देगा। अगर कच्चे माल सस्ते पड़ते हैं, तो या तो एमआरपी स्थिर रहती है या फिर सरकार का सब्सिडी बोझ थोड़ा हल्का होता है—दोनों स्थितियों में किसान की अंतिम जेब सुरक्षित रहती है। साथ ही, नवीकरणीय उपकरण सस्ते पड़ने से सोलर पंप, छोटे कोल्ड-स्टोरेज, ड्रायर और डेयरी में ऊर्जा-बचत समाधान तेजी पकड़ सकते हैं—यह दीर्घकालीन लागत घटाने का रास्ता है।
अधिसूचनाएं 3 सितंबर 2025 को जारी हुई हैं। आमतौर पर दर बदलाव अधिसूचना लागू होते ही बिलिंग में दिखते हैं, इसलिए डीलरशिप अपने प्राइस-लिस्ट अपडेट कर रही हैं। जिन किसानों ने बुकिंग दे रखी है, वे डिलीवरी से पहले रिवाइज्ड इनवॉइस की मांग करें। जिनका लोन अप्रूव हो चुका है, वे फाइनेंसर से नई कीमत के हिसाब से सैन्क्शन लेटर अपडेट करवाएं, ताकि EMI का फायदा मिले।
खरीदारों के लिए एक छोटी चेकलिस्ट काम आएगी:
- डीलर से रिवाइज्ड एक्स-शोरूम कीमत और नई जीएसटी दर अलग से दिखाने को कहें।
- एसेसरीज़, फास्ट-टैग/इंश्योरेंस/आरटीओ जैसे गैर-जीएसटी कॉस्ट अलग से चेक करें।
- फाइनेंसर से अपडेटेड EMI शेड्यूल लें—पुराने और नए दोनों का अंतर देखें।
- पुराने स्टॉक बनाम नई सप्लाई पर मिलने वाले डिस्काउंट का स्पष्ट ब्रेकअप लें।
- स्पेयर-पार्ट्स और सर्विस पैकेज पर 5% दर का लाभ बिल में सुनिश्चित करें।
यह रिफॉर्म सिर्फ तात्कालिक राहत नहीं, बल्कि कृषि मशीनीकरण की रफ्तार बढ़ाने वाली दीर्घकालीन रणनीति का हिस्सा है। जब ट्रैक्टर और इम्प्लीमेंट्स सस्ते हों, तो खेत में काम का समय, डीजल-खपत और बर्बादी सबमें दक्षता आती है। माइक्रो-इरिगेशन, बायो-इनपुट्स और नवीकरणीय ऊर्जा उपकरणों पर कर राहत टिकाऊ खेती की दिशा में कदम है—कम पानी, कम रसायन, कम ऊर्जा लागत।
आगे क्या? खरीदारों का रुझान अगले दो-तीन महीनों में साफ दिखेगा—त्योहारी और रबी सीजन से पहले डीलरशिप में फुटफॉल बढ़ सकता है। निर्माताओं की तरफ से नए ‘बंडल ऑफर्स’—ट्रैक्टर के साथ इम्प्लीमेंट/वारंटी/AMC—देखने को मिल सकते हैं। सरकारी खरीद कार्यक्रमों और कस्टम-हायरिंग सेंटर्स के लिए भी लागत कम होने से मशीनों का बेड़ा बढ़ाना आसान होगा।
कुल तस्वीर यही बताती है कि यह कदम समावेशी विकास की तरफ झुका हुआ है—किसान की लागत घटती है, निर्माता-डीलर का आईटीसी सुरक्षित रहता है, और ग्रामीण बाजार में मांग की नई परतें बनती हैं। अगर बाजार पूरी कटौती का लाभ पास-ऑन करता है, तो आने वाले सीजन में ट्रैक्टर बिक्री, इम्प्लीमेंट की पेनिट्रेशन और माइक्रो-इरिगेशन अपनाने की रफ्तार, सब एक साथ ऊपर जाती दिखेंगी।
Hiren Patel 9.09.2025
अरे वाह, आख़िरकार सरकार ने खेती के असली हीरो को सराहा! ट्रैक्टर पर 12% से 5% तक कर घटाकर किसान भाईयों की जेब की धड़कन बढ़ा दी है। अब हर साल की नई ट्रैक्टर खरीद के सपने हकीकत की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। टायर‑पार्ट्स, बैटरी, गीयरबॉक्स आदि पर भी वही 5% का जादू चल रहा है, जिससे रख‑रखाव का बोझ हल्का हो गया है। यह सिर्फ कीमत कम करने की बात नहीं, बल्कि कृषि मशीनरी की पहुँच को लोकतांत्रिक बनाने की रणनीति है। छोटा किसान अब बड़े खेतों की तरह एग्ज़ीक्यूटिव टूल्स को अपनाने का हक़दार बन गया है। इन कटौतियों से ड्रिप‑इरीगेशन, स्प्रिंकलर जैसे जल संरक्षण उपकरण भी सस्ते हो जाएंगे, जिससे पानी की बचत में इज़ाफ़ा होगा। डेयरी सेक्टर में दूध और चीज़ पर जीएसटी हटाना एक सुपर बूस्टर है, जिससे दुग्ध उत्पादकों की मार्जिन सुधरेगी। उर्वरक इनपुट्स पर कर घटाने से फसल की लागत घटेगी और फसल की उपज बढ़ेगी, यही है असली जीत। नवीकरणीय ऊर्जा उपकरणों पर भी यही रियायत दी गई है, जिससे सोलर पम्प और छोटे कोल्ड‑स्टोरेज अब हर गाँव में उगीं। ये सब बदलाव मिलकर एक समग्र कृषि पुनरुद्धार की दिशा में कदम हैं। किसान अब फाइनेंसिंग के लिए कम एएमआई का भरोसा ले सकेंगे, जो उनकी नकद प्रवाह को स्थिर रखेगा। व्यापारियों को भी इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का फायदा मिलता रहेगा, जिससे बाजार में कीमतें स्थिर रहेंगी। पुरानी स्टॉक को रियायती प्राइस पर मिलना सुनिश्चित होगा, जिससे बिचौलियों को भी फायदा होगा। कुल मिलाकर, यह रिफॉर्म सिर्फ टैक्टिकल राहत नहीं, बल्कि लॉन्ग‑टर्म सस्टेनेबिलिटी की नींव रखता है। तो चलिए, इस नई उम्मीद को अपनाएँ और खेतों में नई ऊर्जा का संचार करें!
Heena Shaikh 9.09.2025
कर की इस पॉलिटिकल धारा में सामाजिक न्याय के परिप्रेक्ष्य को देखना आवश्यक है। 5% दर का चयन केवल आर्थिक गणना नहीं, बल्कि एक नैतिक प्रस्ताव है जिसने असमानता को क्षीण किया है। हालांकि, इस नीति की सीमाओं को समझना भी उतना ही ज़रूरी है, नहीं तो यह एक अस्थायी चमक बन कर रह सकती है। किसानों की वास्तविक आय में सुधार तभी संभव है जब अख़बार की सुर्ख़ियों से परे वास्तविक वितरण हो। हमें यह याद रखना चाहिए कि कर कटौती के साथ-साथ उत्पादन‑स्ट्रक्चर का सुदृढ़ीकरण भी आवश्यक है। इस दिशा में निरंतर निरीक्षण और नीति‑समायोजन की आवश्यकता होगी।
Chandra Soni 9.09.2025
भाइयों और बहनों, अब समय है अपनी खेती को हाई‑टेक बनाते हुए आगे बढ़ाने का! 5% GST के साथ ट्रैक्टर और इम्प्लीमेंट की कीमतें घट रही हैं, तो क्यों न हम नई तकनीक अपनाकर उत्पादन को दुगना करें? डेस्क्रिप्शन में बताये गए माइक्रो‑इरिगेशन सिस्टम अब सस्ते हो गए हैं, जिससे जल‑बचत और फ़सल‑उपज दोनों में इज़ाफ़ा होगा। फाइनेंसिंग टीमों से बात करके आप कम EMI पर अपना नया ट्रैक्टर ले सकते हैं-बस एक नज़र डालें! साथ ही, स्पेयर पार्ट्स की लागत में भी कमी आएगी, तो मेन्टेनेंस पर खर्च कम होगा। चलिए, इस अवसर को पकड़ें और अपने खेत को भविष्य‑सिद्ध बनाएं-साथ मिलकर हम एक हरियाली भरा भारत बना सकते हैं!
Kanhaiya Singh 9.09.2025
सरकार द्वारा प्रस्तुत यह 5% GST संशोधन कृषि अर्थव्यवस्था के स्थायित्व की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कर दरों में इस प्रकार की घटोतरी न केवल उत्पादन लागत को घटाएगी, बल्कि कर्ज़ी किसानों के वित्तीय भार को भी कम करेगी। यह परिवर्तन विशेषतः छोटे और सीमांत किसानों के लिए लाभप्रद होगा, जिनकी आय पर आयातित इनपुट की कीमत का बड़ा प्रभाव पड़ता है। निर्माण और वितरण श्रृंखला में ITC का निरंतर प्रवाह सुनिश्चित करता है कि बाजार में मूल्य स्थिरता बनी रहे। इस नीति के सफल कार्यान्वयन हेतु आवश्यक है कि डीलर व वितरक शीघ्र अपडेटेड प्राइस लिस्ट जारी करें। इस प्रकार की पारदर्शिता से किसान को वास्तविक बचत का अनुभव होगा। इस पहल को पूरी तरह से लागू करने में सभी हितधारकों के सहयोग की अपेक्षा की जाती है।
prabin khadgi 9.09.2025
यह कदम ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करेगा।
Aman Saifi 9.09.2025
कुल मिलाकर, इस नीति का प्रभाव साकार करने के लिए किसानों को सटीक जानकारी और समय पर अपडेटेड इनवॉइस मिलना अनिवार्य है। साथ ही, फाइनेंसिंग संस्थाओं को भी नई कीमतों के आधार पर EMI पुनर्गणना करनी चाहिए, जिससे लाभ अधिकतम हो सके। यह समेकित दृष्टिकोण सुनिश्चित करेगा कि रिफॉर्म के लाभ सीधे किसान तक पहुंचे।
Ashutosh Sharma 9.09.2025
आह, आखिरकार सरकार ने कर को 5% पर लाकर जादू दिखा दिया, जैसे कि इससे असली समस्याएं जुड़ नहीं जाएँगी! ट्रैक्टर की कीमत घटेगी? हाँ, अगर डीलर फुल प्राइस में अभी भी मार्जिन रखेंगे तो क्या फर्क पड़ेगा? यही है “फ्लैश इकोनॉमी” का नज़रिया-जनता को छोटा‑छोटा राहत दिखाते रहो, जबकि बड़े खेल में बदलाव नहीं। इस पहल को देखते हुए मैं सोच रहा हूँ कि अगली चीज़ के लिए क्या हमें 1% GST पर लाना चाहिए? शायद तब ही असली किसान का ख्याल रखा जाएगा। लेकिन हाँ, कम कर भला है-कम टैक्स, कम फंडिंग, कम विकास, वैसे ही।
Rana Ranjit 9.09.2025
समझते हैं, आपके तिरस्कार में भी एक सच्ची नाराजगी झलकती है, जो कई बार वास्तविक मुद्दों को उजागर करती है। लेकिन यह भी सच है कि कर घटाना अकेला उपाय नहीं, इसे उत्पादन‑सुरक्षा, बाजार‑संरचना और सब्सिडी‑नीति के साथ मिलाकर ही काम करेगा। इसलिए, इस पहल को सिर्फ “जादू” कहना अधूरा रहेगा; इसे एक बड़े कृषि‑इकोसिस्टम के हिस्से के रूप में देखना चाहिए। चलिए, इस रिफॉर्म को एक प्लेटफ़ॉर्म मानते हुए, हम सब मिलकर आगे की रणनीतियों को तैयार करें-ताकि किसान का भविष्य वास्तव में सुरक्षित हो।
Arundhati Barman Roy 9.09.2025
सच में, यह 5% जीएसटी रिफॉर्म किसानों कॆ लिये एक बड़ा लाभ है, पर हमें इस बिंदु कॆ लिये भी सजग रहना चाहिए कि सबस्टेन्सियल इम्प्लीमेंटेशन के बिना ये बदलाव केवल कागज़ कॆ टुकड़े रह जाऐंगे। डीलर से सही प्राइस लिस्ट माँगें और फाइनेंसिंग एजेंसियों कॆ साथ अपडेटेड EMI शेड्यूल चेक करें। ऐसा रहे तो ये रिफॉर्म अर्थव्यवस्था में सच्ची स्थिरता लेकर आएगा।