जब भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से एक तेज़ी से पूछे गए सवाल का सामना करना पड़ा, तो उन्होंने अपने चुटीले अंदाज़ से उसे टाल दिया। इंटरव्यू में उनसे पूछा गया कि अगर उन्हें उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन और हंगेरियन-अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस के बीच चुनाव करना हो, तो वह किसके साथ रात्रि भोज करना पसंद करेंगे। जयशंकर के उत्तर ने श्रोताओं को हंसी से झूमने पर मजबूर कर दिया जब उन्होंने बड़ी सरलता से कहा, "मुझे लगता है यह नवरात्रि चल रहा है, और मैं उपवास पर हूं।" इस सीधे-सपाट चुटकी ने न केवल इंटरव्यूकर्ताओं को बल्कि पूरी जनता को भी ब्रिस्क कर दिया।
जॉर्ज सोरोस और किम जोंग उन के विषय में सवाल पूछे जाने के पीछे एक गहरा कारण था। जॉर्ज सोरोस को दुनिया भर में एक विद्रोही विचारक के रूप में जाना जाता है, जो खुले समाज का हिमायती होने का दावा करते हैं। लेकिन उन पर भारत में सत्ता बदलने की कोशिशों को वित्त पोषण करने के आरोप भी लगे हैं। सोरोस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर टिप्पणी करते हुए उनके विरुद्ध सवाल उठाए थे, जिसका भारत की सत्तारूढ़ दल और उसके समर्थकों ने तीव्र विरोध किया।
वहीं दूसरी ओर, किम जोंग उन के साथ कूटनीतिक संबंधों का भिन्न ही अर्थ होता है, क्योंकि उत्तर कोरिया का शासन अपने आन्तरिक और बाहरी नीति के लिए जाना जाता है। इस तरह के सवाल का राजनीतिक वजन भी होता है, और जयशंकर ने बड़े ही अनौपचारिक तरीके से इसे टाल दिया। जो उनका यूनिक अंदाज दर्शाता है।
जयशंकर का सोरोस के खिलाफ रूख पहले भी देखने को मिला है। इस वर्ष की शुरुआत में, जब सोरोस ने अदानी व्यवसाय पर टिप्पणी की थी, तो जयशंकर ने उन्हें 'पुराना, धनी, खतरनाक और अदूरदर्शी' करार दिया था। अदानी-हिंडनबर्ग विवाद के बाद, सोरोस ने भारतीय राजनीति की आलोचना की थी, जिसके जवाब में जयशंकर ने तर्कसंगत रूप से यह कहा था कि इस तरह के लोग केवल उसी चुनाव को सच मानते हैं, जिसमें उनके मनपसंद नतीजे होते हैं।
म्यूनिक सुरक्षा सम्मेलन 2023 में, सोरोस ने भविष्यवाणी की थी कि गौतम अदानी के व्यापारिक संकट मोदी की स्थिति को कमजोर कर सकते हैं। विशेष तौर पर जब अमेरिका के शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के परिणामस्वरूप अदानी की कंपनियों की वैल्यू में गिरावट आई थी। उनकी इन टिप्पणियों के चलते जयशंकर ने कहना पड़ा कि यह मात्र एक खुद के हित की बात होती है, जो खुला समाज होने का दावा करते हैं, लेकिन उनकी नीयत कुछ और ही होती है।
यह मामला साझीदारों और राजनैतिक विश्लेषकों के लिए एक गहन चिंतन का विषय हो सकता है, क्योंकि इसमें कई परतें हैं। जयशंकर के इन जवाबों ने भारतीय राजनीति के एक नए दृष्टिकोण को सामने लाने में मदद की है, जिसमें व्यावहारिकता और व्यंग्य का अनूठा मिश्रण देखा जा सकता है। इस प्रकार की टिप्पणी आइना दिखाती है कि कैसे राजनीतिक अधिकारीगण अत्यल्प प्रतीत होने वाले सवालों को अपने अंदाज में सामाजिक या राजनैतिक संदेश के रूप में बदल देते हैं।
यह सिर्फ एक क्षणभंगुर संवाद नहीं था, बल्कि उसकी गूंज लंबे समय तक सियासी और सामाजिक मीडिया की दुनिया में गूंजती रही। जयशंकर के इस मजेदार जवाब ने दिखाया कि कैसे एक सधे हुए राजनयिक हल्के फुल्के अंदाज में गंभीर सवालों को भी सुलझा सकते हैं, और यह केवल नवरात्रि में उपवास का खेल नहीं था।
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