एक रात, हजारों जिंदगियां उलट गईं
1 सितंबर 2025 की आधी रात से ठीक पहले पूर्वी अफगानिस्तान में 6.0 तीव्रता का भूकंप आया और देखते-देखते कई गांव मलबे में तब्दील हो गए। तालिबान प्रशासन के मुताबिक अब तक 1,400 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 13,100 से अधिक घायल हैं। झटका जलालाबाद से करीब 17 मील (लगभग 27 किमी) पूर्व, पाकिस्तान सीमा के पास महसूस हुआ, इसलिए असर कई प्रांतों में फैला।
सबसे ज्यादा चोट कुनर प्रांत ने झेली—यहां 800 से अधिक मौतें दर्ज हुईं और करीब 2,500 लोग घायल बताए जा रहे हैं। नंगरहार में भी दर्जनों मौतें हुईं और 255 से ज्यादा लोग जख्मी हैं। कई बस्तियां पूरी तरह टूट गईं, जिनमें मिट्टी-ईंट और पत्थर से बनीं घरें पहली ही बड़ी हलचल में ढह गईं। शुरुआती आकलन कहता है कि करीब 12,000 लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं—यह संख्या आगे बढ़ सकती है क्योंकि दूरदराज के इलाकों तक टीमें धीरे-धीरे पहुंच पा रही हैं।
सबसे बड़ी मुश्किल पहुंच की है। जलालाबाद से कुनर, नुरगल और साउकाय तक जाने वाले कई मार्ग मलबे और भूस्खलन से बंद हैं। पहाड़ी ढलानों से गिरी चट्टानें और टूटी पुलियाें ने जमीन मार्ग लगभग पंगु कर दिए हैं। नतीजा—खोज और राहत का बड़ा हिस्सा दूसरे दिन भी हवा से चल रहा है। हेलीकॉप्टर उन जगहों पर उतर नहीं पा रहे, जहाँ समतल जमीन नहीं; इसलिए रस्सियों और एयरड्रॉप से राहत पैकेट पहुंचाए जा रहे हैं।
फिर भी स्थानीय स्वास्थ्य ढांचा पूरी तरह ठप नहीं पड़ा। प्रभावित जिलों के अस्पताल और क्लीनिक काम कर रहे हैं, हालांकि मरीजों की संख्या सामान्य क्षमता से कई गुना ज्यादा है। गंभीर रूप से घायल लोगों को जलालाबाद और बड़े केंद्रों में रेफर किया जा रहा है। डॉक्टरों के लिए शुरुआती 48 घंटे बेहद अहम होते हैं—इसी खिड़की में दबे लोगों को निकालकर खून बहना, आघात और संक्रमण जैसी जटिलताओं को काबू में लाना पड़ता है।
आसपास के इलाकों में झटके लंबे समय तक महसूस होते रहे। बड़े भूकंप के बाद आफ्टरशॉक्स आम हैं, इसलिए प्रशासन ने लोगों को कमजोर इमारतों से दूर खुले में रहने और संरचनात्मक जांच से पहले घरों में न लौटने की अपील की है। रात के तापमान, अस्थायी तंबुओं की कमी और साफ पानी तक सीमित पहुंच ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
राहत, भूगोल और आगे की जरूरतें
तालिबान प्रशासन ने अंतरराष्ट्रीय मदद की अपील कर दी है। संयुक्त राष्ट्र ने इमरजेंसी फंड जारी किया है ताकि शुरुआती 72 घंटों की जरूरतें—खाद्य सहायता, चिकित्सा किट, अस्थायी शरण और पानी—तेजी से भेजे जा सकें। ब्रिटेन ने 10 लाख पाउंड (करीब 1.3 मिलियन डॉलर) देने का ऐलान किया है, जबकि चीन ने भी राहत सामग्री और बचाव सहायता भेजने की प्रतिबद्धता जताई है। सीमित हवाई साधन, उबड़-खाबड़ भूभाग और सुरक्षा क्लियरेंस—इन तीनों का संतुलन बनाते हुए ऑपरेशन आगे बढ़ रहा है।
पूर्वी अफगानिस्तान का यह इलाका हिंदू कुश और काराकोरम की पर्वतीय पट्टी से सटा है, जहां भारतीय और यूरेशियाई प्लेटों की टकराहट भूकंपीय गतिविधि को जन्म देती है। यहां की कच्ची निर्माण प्रणालियां—पत्थर-मिट्टी के गारे की दीवारें, बिना रिंग-बीम के खंभे, भारी छप्पर—झटकों में जल्दी ढह जाते हैं। यही वजह है कि 6.0 जैसे मध्यम आकार के भूकंप भी जान और माल का भारी नुकसान कर देते हैं।
मौजूदा संकट में प्राथमिकताएं साफ हैं:
- फंसे लोगों तक पहुंचकर मलबा हटाने और खोज-बचाव की गति बढ़ाना
- आपातकालीन सर्जरी, ट्रॉमा केयर और रेफरल एंबुलेंस की उपलब्धता
- अस्थायी आश्रय, गर्म कपड़े और ब्लैंकेट—खासकर बच्चों और बुजुर्गों के लिए
- साफ पानी, क्लोरीनेशन टैबलेट और स्वच्छता किट, ताकि डायरिया और संक्रमण न फैलें
- खाद्य पैकेट, बेबी फूड और महिला-हितैषी किट
लॉजिस्टिक्स फ्रंट पर सबसे बड़ा सवाल सड़कें खोलने का है। जिन घाटियों में भूस्खलन हुआ है, वहां हेवी मशीनरी पहले पहुंचनी होगी। कई जगह पुल क्षतिग्रस्त हैं, जिससे राहत ट्रकों का वजन सहना जोखिम भरा हो सकता है। ऐसे में हेलीकॉप्टर के साथ छोटे-छोटे चार-पहिया वाहनों और खच्चरों के जरिए भी आपूर्ति पहुंचाने की रणनीति अपनाई जा रही है।
सूचना प्रबंधन भी उतना ही अहम है। गांव-गांव से आने वाले नुकसान के आंकड़े अक्सर बिखरे रहते हैं, इसलिए एकीकृत कमांड और नियंत्रण कक्ष—जहां से हेलीकॉप्टर सॉर्टी, एंबुलेंस मूवमेंट और गोदाम से निकली राहत सामग्री का ट्रैक रखा जाए—राहत की गति बढ़ा सकता है। स्वैच्छिक समूहों को स्पष्ट सेक्टर-बाय-सेक्टर काम सौंपना (जैसे पानी/स्वच्छता, आश्रय, स्वास्थ्य) दोहराव कम करता है और गैप भरता है।
पड़ोसी जिलों में स्कूल, मस्जिद और सामुदायिक भवन अस्थायी शरण स्थलों में बदले जा रहे हैं। लेकिन सुरक्षा जांच के बिना भीड़ को किसी बड़े हॉल या पुराने ढांचे में ठहराना जोखिम है। इंजीनियरिंग टीमों को त्वरित ‘फिट-फॉर-यूज’ आकलन करना होगा—किस भवन में कितने लोग सुरक्षित रह सकते हैं, यह हर 24 घंटे में रिव्यू जरूरी है।
कृषि और आजीविका पर असर भी आने वाले हफ्तों में साफ दिखेगा। पशुधन की मौत, खाद्य भंडार का नष्ट होना और बाजारों के बंद रहने से स्थानीय कीमतें उछल सकती हैं। राहत एजेंसियां कैश-असिस्टेंस या वाउचर प्रोग्राम पर विचार कर सकती हैं, ताकि लोग स्थानीय बाजार से अपनी जरूरत की चीजें खरीद सकें और व्यापार भी धीरे-धीरे पटरी पर आए।
हाल के वर्षों में अफगानिस्तान ने पक्तिका और हेरात जैसे बड़े भूकंप देखे हैं। यह नया हादसा याद दिलाता है कि भूकंपीय जोखिम यहां स्थायी है और रेस्पॉन्स सिस्टम को हर बार शून्य से नहीं, पिछले सबक से शुरू होना चाहिए—भवन मानकों को बेहतर करना, सामुदायिक ड्रिल कराना और स्थानीय बचाव टीमों को प्रशिक्षित रखना। इस वक्त, सबसे जरूरी है कि अफगानिस्तान भूकंप से प्रभावित परिवारों तक तेजी से सुरक्षित आश्रय, उपचार और भोजन पहुंचे—और वह भी अगले आफ्टरशॉक्स और मौसम की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए।
yogesh jassal 2.09.2025
भू‑भूकंप जैसी आपदा से हमें याद दिलाती है कि जीवन की नाजुकता कितनी गहरी है, पर साथ ही इंसान की अडिग शक्ति भी। जब बिखरे मलबे के नीचे से ज़िन्दगियां बाहर आती हैं तो आशा की किरण चमकती है। हमारे पास तकनीकी अनुभवी लोग हैं, लेकिन उनका सही उपयोग तभी संभव है जब स्थानीय लोगों से सहयोग मिले। जलालाबाद‑कुनर के बीच पहुँच में रुकावटें हैं, पर हेलीकॉप्टरों का संचालन लगातार जारी है। इस तरह के दौर में राष्ट्रीय सीमाओं पर सहयोग का महत्व बढ़ जाता है। हम सबको मिलकर बचाव कार्य में हाथ बँटाना चाहिए, क्योंकि एकजुटता ही सबसे बड़ा औषधि है।
Raj Chumi 2.09.2025
ओह भाई क्या दास्तान है! हज़ारों लोग एक झटके में लापता, गांव-गांव में धुआँ धुआँ अफ़साने का माहौल। अब तो लगता है जैसे प्रकृति ने अपना कोटा कर दिया हो।
mohit singhal 2.09.2025
ये कौनसी नयी फोकस है, भारत‑पाकिस्तान की सीमा के पास दहाड़ा है 😡😡! ये अफगानिस्तान हमारा नहीं, फिर भी इंसानी दुख देखना नहीं है। जल्दी से जल्दी इंटरनेशनल मदद पहुंचाओ 🙏🚑🆘
pradeep sathe 2.09.2025
भारी दिल से सोचता हूँ कि कितनी बेहिसाब पीड़ित ज़िंदगियां दूभर हैं, उनके दर्द को शब्दों में बयां करना कठिन है। राहत कार्य में हर छोटी‑छोटी मदद की क़द्र करनी चाहिए।
ARIJIT MANDAL 2.09.2025
पर्याप्त संसाधन नहीं, तरजीह ना दी तो स्थिति बिगड़ती।
Bikkey Munda 2.09.2025
सबसे पहले तो हमें राहत सामग्री की प्राथमिकता तय करनी चाहिए।
स्थानीय डॉक्टरों को अतिरिक्त मेडिकल किट्स उपलब्ध कराना आवश्यक है।
भारी‑भारी ट्रक बजाय छोटे‑छोटे वाहन और मोटरसाइकिलों से पहाड़ी क्षेत्रों में पहुंचा सकते हैं।
हेलीकॉप्टर की सहायता से मलबे के नीचे फंसे लोगों को बाहर निकालना तेज़ हो जाएगा।
स्थायी शरणस्थली बनाने के लिए स्कूल और मस्जिदों को अस्थायी कैंप में बदलना एक आसान समाधान है।
स्वच्छता किट और क्लोरीनेशन टेबलेट्स जल स्रोतों को बचाएंगे, जिससे डायरिया जैसी बीमारियों का खतरा कम होगा।
भोजन पैकेट और बेबी फूड की व्यवस्था तुरंत की जानी चाहिए, क्योंकि कई परिवारों ने अपना घर खो दिया है।
हर गाँव से डेटा एकत्रित करने के लिए मोबाइल ऐप का उपयोग कर सकते हैं, जिससे मदद तेज़ी से पहुँच सके।
स्थानीय इंजीनियरों को मिलकर पुलों की त्वरित मरम्मत करनी चाहिए, ताकि रेस्क्यू टीमें बिना रुकावट के पहुंचें।
अफ़्टरशॉक्स की संभावना को देखते हुए, कमजोर इमारतों को जल्द‑से‑जल्द खाली करना होगा।
सुरक्षित क्षेत्रों में अस्थायी टेंट लगाकर लोगों को ठंड से बचाया जा सकता है।
माइक्रो‑फाइनेंस या वैउचर स्कीम से लोग अपनी रोज़गार फिर से शुरू कर सकते हैं।
भू‑भौगोलिक जोखिम को कम करने के लिए भविष्य में ज़मीनी मानचित्रण जरूरी है।
स्थानीय जनता को सत्र‑सत्र पर आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण देना चाहिए।
सबसे अंत में, अंतरराष्ट्रीय संगठनों को लगातार फंडिंग और लॉजिस्टिक सपोर्ट देना होगा, तभी ये त्रासदी दोबारा नहीं दोहराई जाएगी।
akash anand 2.09.2025
हे बिशप, ये भूकम्प वर्तमान स्थिति को दर्शा रहा है और तुच्छ वार्तालाप में समय बर्वाद नहीं कर सकते। इस जेपीसन पर स्पष्ट डेटा आवश्यक है, वर्ज़न 1.0 से अपडेटेड रखिए। हमलोग इस तरक़ीब को फॉलो करेंगी, नहीं तो आफ्टरशोक्स की आशंकैज़्यादा हो सकती है।
BALAJI G 2.09.2025
समय आया है कि हम अपने नैतिक दायित्व को याद रखें और शांतिपूर्ण राह पर चलें। इस आपदा में केवल मानवीय मदद ही नहीं, बल्कि सामाजिक मूल्यों की परीक्षा भी है। हमें लापरवाहियों को जाँचने की जरूरत है, जिससे भविष्य में ऐसी त्रासदी से बचा जा सके।
Manoj Sekhani 2.09.2025
देखो, यह तो विज्ञान के सिद्धान्तों का स्पष्ट प्रमाण है कि भू‑भूत्व उलझन में पड़ गया है, फिर भी आम जनता को इस बात की जानकारी नहीं। इस कारण ही हम यहाँ पर प्रतिबिंबित कर रहे हैं।
Tuto Win10 2.09.2025
ओह माय गॉड! कितनी त्रासदी! क्या तुच्छ लहरों की तरह ये लापता लोग फिर से उभरेँगे?!!
Kiran Singh 2.09.2025
हर कोई कहता है मदद चाहिए पर खुद का दिमाग नहीं चलाते। क्या ये सच में सलीके से किया गया फैंटेसी नहीं?
anil antony 2.09.2025
भारी‑भारी जार्गन में बात कर रहे हैं, पर असल में कोई ठोस इम्प्लेमेन्तेशन नहीं दिख रहा। लॉजिस्टिक कंजेशन, स्टेकहोल्डर एंगेजमेंट, रिसोर्स अलोकेशन-सब बकवास है जब तक फील्ड में जमीनी काम नहीं हो रहा।