सालाना 30,000 सीधे खाते में: बेटियों की पढ़ाई के लिए बड़े पैमाने पर मदद

रायपुर से एक अहम पहल की शुरुआत हुई है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने राजधानी में एक कार्यक्रम में घोषणा की कि राज्य की छात्राएं अब उच्च शिक्षा के लिए सालाना 30,000 रुपये की मदद पा सकेंगी। यह मदद अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन की देशव्यापी पहल का हिस्सा है, जिसका मकसद आर्थिक अड़चनों के कारण अटक जाने वाली बेटियों की पढ़ाई को सुचारू रखना है।

योजना के तहत सरकारी स्कूलों से कक्षा 10 और 12 पास कर चुकी वे छात्राएं, जिन्हें किसी मान्यता प्राप्त कॉलेज, विश्वविद्यालय या डिप्लोमा संस्थान में दाखिला मिला है, पूरे कोर्स की अवधि तक हर साल 30,000 रुपये पाएंगी। राशि सीधे छात्रा के बैंक खाते में आएगी—एक शैक्षणिक वर्ष में दो किस्तों में। खर्च का दायरा भी व्यावहारिक रखा गया है: हॉस्टल और मेस फीस का अंतर, स्थानीय आवागमन, किताबें-स्टडी मटेरियल, इंटरनेट-डिवाइस, अतिरिक्त लैब/परीक्षा शुल्क, इंटर्नशिप या प्रैक्टिकल ट्रेनिंग से जुड़े छोटे-मोटे खर्च—यानी वह सब, जो अक्सर अन्य छात्रवृत्तियों में छूट जाता है।

सरल उदाहरण लें—अगर कोई छात्रा बीएससी नर्सिंग जैसे 4 साल के कोर्स में पढ़ रही है, तो उसे कुल 1,20,000 रुपये मिलेंगे। यही लचीलापन डिप्लोमा, पॉलिटेक्निक, बीए-बीकॉम-बीएससी, बीएड, पैरामेडिकल जैसे कार्यक्रमों पर भी लागू है, बशर्ते संस्थान और कोर्स मान्य हों।

मुख्यमंत्री साय ने संदेश साफ रखा—“बेटी पढ़ेगी तो परिवार और समाज आगे बढ़ेगा।” उनकी प्राथमिकता है कि कॉलेजों में पढ़ रही हर जरूरतमंद छात्रा तक जानकारी पहुंचे और कोई भी केवल पैसों की कमी से पीछे न रह जाए।

यह कार्यक्रम आकार में भी बड़ा है। 2025-26 शैक्षणिक वर्ष में 18 राज्यों की 2.5 लाख छात्राओं तक पहुंच बनाने का लक्ष्य है। फाउंडेशन अगले तीन साल में करीब 2,250 करोड़ रुपये झोंकने की योजना में है—यह लड़कियों की उच्च शिक्षा में देश की सबसे बड़ी परोपकारी निवेश पहलों में से एक माना जा रहा है।

अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन के सीईओ अनुराग बेरार ने साफ कहा, “तरक्की के बावजूद, उच्च शिक्षा तक पहुंच में लड़कियों को सामाजिक और आर्थिक बाधाओं से जूझना पड़ता है। यह छात्रवृत्ति उन्हें अपने फैसलों पर अधिक नियंत्रण देने की कोशिश है।” पहले चरण में 2024-25 में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश, राजस्थान, झारखंड के चुनिंदा जिलों में पायलट चला और 25,000 से ज्यादा छात्राओं को वास्तविक मदद मिली—यानी मॉडल जमीन पर परखा जा चुका है।

नीति स्तर पर यह पहल ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की भावना से मेल खाती है। राज्य सरकार ने कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से कहा है कि वे कैंपस में व्यापक सूचना दें ताकि कोई पात्र छात्रा छूट न जाए। सरल भाषा में कहें—जो छात्रा सरकारी स्कूल से 10वीं-12वीं पास है, किसी मान्यता प्राप्त उच्च संस्थान में दाखिले का प्रमाण रखती है और बैंक खाता सक्रिय है, उसके लिए रास्ता खुला है।

कौन-से राज्य, कौन पात्र और आवेदन कब से

यह कार्यक्रम 18 राज्यों में चल रहा है—जहां गरीबी, दूरी, सुरक्षा और आवास जैसी चुनौतियां अक्सर बेटियों को कॉलेज पहुंचने से रोक देती हैं। सूची इस प्रकार है:

  • बिहार
  • झारखंड
  • उत्तर प्रदेश
  • मध्य प्रदेश
  • छत्तीसगढ़
  • ओडिशा
  • अरुणाचल प्रदेश
  • असम
  • कर्नाटक
  • मणिपुर
  • मेघालय
  • मिजोरम
  • नगालैंड
  • राजस्थान
  • सिक्किम
  • तेलंगाना
  • त्रिपुरा
  • उत्तराखंड

पात्रता के मूल बिंदु इस प्रकार हैं—(1) कक्षा 10 और 12 सरकारी स्कूल से पास, (2) मान्यता प्राप्त उच्च शिक्षा संस्थान में प्रवेश, (3) डिग्री या डिप्लोमा—दोनों श्रेणियां शामिल। योजना पूरे कोर्स की अवधि तक सालाना 30,000 रुपये देती है। राशि सीधे लाभांतरण (डीबीटी) के जरिए साल में दो बार खाते में आएगी ताकि छात्राएं सेमेस्टर-वार खर्च संभाल सकें।

2025-26 चक्र के लिए आवेदन सितंबर 2025 से शुरू हो चुका है। कॉलेजों को निर्देश दिया गया है कि वे नोटिस बोर्ड, ओरिएंटेशन सत्र और छात्र सलाह शिविरों के जरिए योजना की पूरी जानकारी दें। इसका मतलब है—जितना जल्दी दाखिला और जरूरी कागज तैयार, उतनी जल्दी पहली किस्त मिलने की संभावना।

कागजों की बात करें तो सामान्य तौर पर छात्राओं को ये दस्तावेज पास रखने चाहिए: कक्षा 10 और 12 की मार्कशीट की प्रतियां, दाखिले का प्रमाणपत्र/एडमिशन लेटर, सक्रिय बैंक खाता और पहचान दस्तावेज। आय-पृष्ठभूमि और श्रेणी संबंधी दस्तावेज वहां काम आते हैं, जहां अन्य छात्रवृत्तियों से समन्वय की जरूरत पड़ती है। फाउंडेशन ने इस सहायता को ‘पूरक’ प्रकृति का रखा है—यानी यह सरकारी पोस्ट-मैट्रिक या अन्य मेरिट/आवश्यकता आधारित छात्रवृत्तियों के साथ मिलकर कुल खर्च का बोझ कम करती है।

जमीन पर इसका असर क्या होगा? हकीकत यह है कि कॉलेज पहुंचने के बाद खर्च का असली दबाव रोजमर्रा के छोटे-छोटे भुगतानों से आता है—बस पास, हॉस्टल डिपॉजिट, प्रैक्टिकल किट, नोट्स की फोटोकॉपी, अतिरिक्त लैब फीस, ऑनलाइन फॉर्म, इंटर्नशिप के लिए दूसरे शहर जाना, या खराब मोबाइल/लैपटॉप की मरम्मत। कई बार परिवार ट्यूशन फीस का इंतजाम तो कर लेते हैं, पर ये “जेब से” वाले खर्च पढ़ाई की लय तोड़ देते हैं। सालाना 30,000 रुपये ठीक इसी गैप को भरते हैं।

छत्तीसगढ़ के संदर्भ में यह खास क्यों है? राज्य के कई जिलों में छात्राओं को कॉलेज तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। किराया, सुरक्षा और समय—ये सब परिवारों के लिए चिंता का कारण बनते हैं। इस सहायता से परिवारों का भरोसा बढ़ेगा और छात्राओं के सामने विकल्प खुलेंगे—जैसे नर्सिंग, पैरामेडिकल, टीचिंग, आईटीआई/पॉलिटेक्निक, बीएससी-बीकॉम-बीए जैसे कोर्स जिन्हें अक्सर वित्तीय वजहों से टाल दिया जाता है। मुख्यमंत्री ने साफ संदेश दिया है कि “जानकारी का अभाव” लाभ लेने में बाधा नहीं बनेगा—यही कारण है कि कॉलेजों को व्यापक जागरूकता अभियान चलाने को कहा गया है।

फाउंडेशन के स्तर पर भी दृष्टिकोण दीर्घकालिक है। 2024-25 के पायलट में मिली सीख—जैसे आवेदन प्रक्रिया को सरल रखना, दस्तावेज़ों का बोझ सीमित रखना, और भुगतान की समयबद्धता—को अब 18 राज्यों में लागू किया जा रहा है। लक्ष्य यह है कि छात्रवृत्ति समय पर पहुंचे और उसके उपयोग में छात्राओं को स्वतंत्रता मिले।

छात्राओं और अभिभावकों के लिए एक छोटा-सा चेकलिस्ट काम आएगा:

  • दाखिले का प्रमाण और बैंक खाता अद्यतन रखें—नाम मिलान, केवाईसी पूरा।
  • कॉलेज के नोटिस बोर्ड/स्टूडेंट सेल से आवेदन की समयसीमा और चरण समझ लें।
  • अगर आप किसी अन्य छात्रवृत्ति में शामिल हैं, तो दोनों सहायता के नियम टकराते तो नहीं—यह कॉलेज से कन्फर्म कर लें।
  • राशि को सेमेस्टर-वार जरूरी मदों पर ही इस्तेमाल करें; रसीदें और खर्च का बेसिक रिकॉर्ड संभाल कर रखें।

आखिर में एक अहम बात—यह सरकारी और परोपकारी, दोनों स्तर पर साझेदारी का उदाहरण है। राज्य सरकार मंच देती है, संस्थान सुविधा देते हैं और फाउंडेशन वित्तीय सहारा देता है। जब यह तीनों पहिये साथ चलते हैं, तब परिणाम दिखते हैं। पायलट चरण में जो 25,000 छात्राएं आगे बढ़ीं, वे इसका सटीक प्रमाण हैं।

योजना का नाम याद रखिए—अज़ीम प्रेमजी छात्रवृत्ति—और अगर आपके परिवार या पड़ोस में कोई पात्र छात्रा है, तो उसे आवेदन के लिए जरूर प्रेरित करें। कई बार फर्क सिर्फ 30,000 रुपये का नहीं, उस भरोसे का होता है जो अगला कदम उठाने की हिम्मत देता है।