परिचय
भारतीय संसद में हाल ही में एक घटना ने तूफान खड़ा कर दिया, जब विपक्षी नेता और अनुभवी सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने शपथ ग्रहण के बाद 'जय फिलिस्तीन' का नारा लगाया। यह घटना सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और अन्य राजनीतिक दलों के बीच विवाद का कारण बन गई। आउवािसी ने यह नारा उर्दू में शपथ लेने के बाद लगाया, जिसमें उन्होंने 'जय भीम', 'जय मिम', 'जय तेलंगाना', और 'जय फिलिस्तीन' शामिल किया।
विवाद का कारण
यह विवाद इस तथ्य के कारण पैदा हुआ कि 'जय फिलिस्तीन' का नारा अंतरराष्ट्रीय राजनीति से जुड़ा हुआ है, विशेष रूप से गाजा युद्ध के संदर्भ में। भाजपा के सदस्यों ने ओवैसी पर आरोप लगाया कि उन्होंने भारतीय संविधान की भावना का उल्लंघन किया है और एक विदेशी राष्ट्र के प्रति अपनी निष्ठा दिखाई है। उन्होंने यह भी कहा कि ओवैसी ने संविधान की शपथ का पालन नहीं किया और इसकी मर्यादा का उल्लंघन किया।
ओवैसी का स्पष्टीकरण
ओवैसी ने इन आरोपों को खारिज किया और बताया कि उनका इरादा किसी राष्ट्र के प्रति निष्ठा दिखाने का नहीं था, बल्कि यह मानवाधिकारों और न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि संसद के अंदर और बाहर मानवाधिकार और न्याय की लड़ाई करने का उनका संकल्प है और 'जय फिलिस्तीन' का नारा उसी आस्था का हिस्सा है।
पार्टी और राजनीति
असदुद्दीन ओवैसी तेलंगाना के हैदराबाद निर्वाचन क्षेत्र से पांच बार सांसद रह चुके हैं और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष हैं। यह पार्टी मुस्लिमों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की बात करती है। हालांकि एआईएमआईएम राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी गठबंधन इंडिया का हिस्सा नहीं है, लेकिन उसने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी खास पहचान बनाई है।
भाजपा का रुख
भाजपा के सदस्यों ने ओवैसी के बयान की कड़ी निंदा की और कहा कि वह संसद में इस तरह के नारेबाजी का इस्तेमाल सिर्फ राष्ट्रीय एकता को ठेस पहुंचाने के लिए कर रहे हैं। उनका कहना है कि ओवैसी ने जानबूझकर ऐसी बातें कीं जो भारतीय संविधान के खिलाफ हैं।
ओवैसी के समर्थकों का तर्क
दूसरी ओर, ओवैसी के समर्थक कहते हैं कि उन्होंने केवल मानवाधिकारों की बात की है और उन लोगों के प्रति अपनी समर्थन जाहिर किया है जो न्याय और अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इन समर्थकों का दावा है कि ओवैसी ने कोई संवैधानिक धारा का उल्लंघन नहीं किया और वे सिर्फ लोगों के अधिकारों की वकालत कर रहे हैं।
संवैधानिक और कानूनी पहलू
संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि सांसद के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान दूसरों के प्रति निष्ठा दर्शाना संविधान के अनुकूल नहीं है। भारतीय संविधान के तहत, एक सांसद को अपनी शपथ संविधान के प्रति निष्ठा के साथ पूरी करनी चाहिए। संविधान में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि शपथ केवल देश के प्रति निष्ठा और संविधान का पालन करने के संदर्भ में होनी चाहिए।
भविष्य की राह
इस मुद्दे ने संसद और देश के राजनीतिक माहौल में एक नए विवाद को जन्म दिया है। अब देखने वाली बात यह होगी कि इस पर क्या कदम उठाए जाते हैं और क्या सांसद असदुद्दीन ओवैसी पर किसी प्रकार की कार्रवाई की जाती है या नहीं। इसमें कोई शक नहीं कि आने वाले दिनों में यह मामला राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना रहेगा।
ओवैसी के 'जय फिलिस्तीन' नारे ने जहां एक ओर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को भारतीय संसद में लाने का काम किया है, वहीं दूसरी तरफ, यह घटना भारतीय राजनीति के सामाजिक और संवैधानिक मूल्यों पर भी सवाल उठाती है।
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