पूर्व बंगाल सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य का निधन
पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का निधन गुरुवार को उनके कोलकाता स्थित आवास पर हो गया। वे 80 वर्ष के थे और लंबे समय से दीर्घकालिक प्रतिरोधक फेफड़ों की बीमारी (COPD) और अन्य उम्र से संबंधित बीमारियों से जूझ रहे थे। उनका स्वास्थ्य पिछले कुछ वर्षों से गंभीर अवस्था में था, और इसके बावजूद उन्होंने अपने राज्य के प्रति अपने समर्पण को कभी प्रभावित नहीं होने दिया।
मुख्यमंत्री के तौर पर दो कार्यकाल
बुद्धदेव भट्टाचार्य ने 2000 से 2011 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा दी। उनके नेतृत्व में सीपीआई (एम) ने 2001 और 2006 के विधानसभा चुनावों में लगातार जीत हासिल की। उनके कार्यकाल के दौरान, उन्होंने राज्य में औद्योगीकरण की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। हालांकि, उन्हें औद्योगिक भूमि अधिग्रहण को लेकर तीव्र विरोध का सामना करना पड़ा, विशेष रूप से ममता बनर्जी के नेतृत्व में हुए आंदोलन।
भट्टाचार्य के कार्यकाल की एक महत्वपूर्ण पहल थी राज्य में निवेश को आकर्षित करने के लिए किए गए प्रयास। उन्होंने विभिन्न उद्योगपतियों को पश्चिम बंगाल में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया और इसके लिए नीतिगत सुधार किए। उनकी इस नीति के माध्यम से राज्य में कई नए उद्योग स्थापित हुए, जिससे रोजगार और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला।
पार्टी में सक्रिय भूमिका
मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद भी बुद्धदेव भट्टाचार्य पार्टी में सक्रिय रहे। उन्होंने 2015 में सीपीआई (एम) की पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति से इस्तीफा दिया और 2018 में पार्टी के राज्य सचिवालय की सदस्यता भी छोड़ दी। यह उनके तन्दुरुस्ती की समस्या को देखते हुए उठाया गया कदम था। फिर भी, उन्होंने 2019 में एक वामपंथी मोर्चा रैली में सार्वजनिक रूप से उपस्थित होकर सबको चौंका दिया, जहां वे ऑक्सीजन समर्थन के साथ पहुंचे थे।
व्यक्तिगत जीवन और साहित्य प्रेम
बुद्धदेव भट्टाचार्य अपनी सरलता और विनम्रता के लिए प्रसिद्ध थे। उनका जीवन हमेशा से सार्वजनिक सेवा के प्रति समर्पित रहा और उन्होंने हमेशा आम जनता की भलाई के लिए काम किया। वे बंगाली साहित्य के भी प्रेमी थे और उन्हें कई लेखों और पुस्तकों के लिए जाना जाता है। उनकी पत्नी मीरा और बेटी सुचेता उनके साथ हैं।
राजनीतिक जगत में शोक
भट्टाचार्य के निधन पर उनके समर्थकों और अन्य राजनीतिक नेताओं ने शोक व्यक्त किया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी ने अपने शोक संदेशों में उनके योगदान को याद किया और उनके परिवार के प्रति संवेदनाएँ प्रकट की।
बुद्धदेव भट्टाचार्य के निधन से राजनीतिक जगत में एक शून्य उत्पन्न हो गया है। वे एक उस नेता के रूप में याद किए जाएंगे जिसने हमेशा अपने राज्य और जनता के हित में कार्य किया।
Meenal Khanchandani 8.08.2024
हम सबको नैतिक सिद्धांतों की कड़ाई से पालना करनी चाहिए।
Anurag Kumar 8.08.2024
बुद्धदेव जी की कहानी वाकई में प्रेरणादायक है।
उन्होंने क्रिकेट के शौक को राजनीति की सेवा के साथ जोड़ा।
उनके औद्योगिक कदमों से कई नौकरी के अवसर बने।
आज भी उनका मानसिकता नई पीढ़ी के लिए एक मिसाल है।
Prashant Jain 8.08.2024
उनके उद्योगवादी नीतियों ने कई लोगों की चिंताएँ बढ़ा दी।
असंतोष के कारण आंदोलन भी भड़के।
DN Kiri (Gajen) Phangcho 8.08.2024
समझता हूँ कि वह समय कठिन था पर उनके प्रयासों से राज्य को लाभ हुआ
Yash Kumar 8.08.2024
वो तो बस एक राजनेता था, सब कुछ बड़ा नहीं। लेकिन जनता के दिल में जगह बनाना आसान नहीं।
Aishwarya R 8.08.2024
बुद्धदेव भट्टाचार्य की साहित्यिक रुचि अक्सर नजरअंदाज़ होती है
Vaidehi Sharma 8.08.2024
सच में? उन्होंने किताबों में भी गहराई से लिखा 😮
Jenisha Patel 8.08.2024
बुद्धदेव जी के स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के बावजूद, उनका कार्यक्षेत्र विस्तृत और प्रभावशाली रहा।
Ria Dewan 8.08.2024
क्या कहा जाए, जब राजनेता भी सांस के लिए कोशिकाओं से लड़ते हैं, तो क्या उन्हें 'जवानी' कहा जा सकता है?
rishabh agarwal 8.08.2024
विचारों की इस धारा में, हम सभी को जीवन के क्षणभंगुर पहलुओं को समझने का अवसर मिलता है।
Apurva Pandya 8.08.2024
ऐसी अग्न्यांग को देखना दुःखद है :( हमें ईमानदारी से उनके योगदान को याद रखना चाहिए।
Nishtha Sood 8.08.2024
आशा है कि उनका परिवार शोक को सहन कर पाएगा और उनके काम को याद रखेगा
Hiren Patel 8.08.2024
उन्हें याद करने के बाद भी दिल में एक अजीब सी जलन घहराती है, जैसे पुरानी सड़क पर बारिश की बूंदें!
Heena Shaikh 8.08.2024
परन्तु इतिहास में उनका स्थान केवल आँकड़ों से परे है; यह विचार ही हमें आगे ले जाता है
Chandra Soni 8.08.2024
वर्षों की नीति‑निर्माण प्रक्रिया में उनके औद्योगिक मॉडल को ‘ड्राइव‑थ्रू इसोमेट्रिक स्ट्रेटेजी’ कहा जा सकता है
Kanhaiya Singh 8.08.2024
उनकी विदाई हमें गहरा शोक देती है।
prabin khadgi 8.08.2024
बुद्धदेव भट्टाचार्य के निधन ने पश्चिम बंगाल के राजनैतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण खालीपन उत्पन्न किया।
उनकी दो कार्यकालों में किए गए औद्योगीकरण के कदमों ने राज्य की आर्थिक संरचना को पुनः आकार दिया।
विशेषकर 2001 और 2006 के चुनावों में सीपीआई (एम) की लगातार जीत उनके नेतृत्व की शक्ति को दर्शाती है।
हालांकि, औद्योगिक भूमि अधिग्रहण को लेकर उत्पन्न हुए विरोध ने सामाजिक असंतोष को भी उजागर किया।
ममता बनर्जी के नेतृत्व में हुए आंदोलनों ने यह स्पष्ट किया कि विकास और जनहित के बीच संतुलन आवश्यक है।
भट्टाचार्य ने साहित्य में भी रुचि दिखाई, जिससे उनके व्यक्तित्व के बहुआयामी पहलुओं को समझा जा सकता है।
उनकी पत्नी मीरा और बेटी सुचेता के समर्थन ने उन्हें कठिन समय में भी स्थिर किया।
अस्थायी रूप से राजनीति से हटने के बाद भी उन्होंने पार्टी में सक्रिय भूमिका निभाई, जो उनके प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
2019 में ऑक्सीजन सपोर्ट के साथ सार्वजनिक रैली में उनका प्रकट होना, स्वास्थ्य चुनौतियों के सामने साहस का प्रतीक था।
इन तथ्यों को देख कर यह प्रश्न उठता है कि क्या व्यक्तिगत संघर्षों को सार्वजनिक सेवा से अलग करके देखा जा सकता है।
राजनीतिक इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ नेता अपने स्वास्थ्य संकट के बावजूद कार्य में लिप्त रहे हैं।
भट्टाचार्य का जीवन हमें यह सिखाता है कि सार्वजनिक कर्तव्य और व्यक्तिगत दुर्बलता के बीच तालमेल आवश्यक है।
भविष्य में कौन से नेता इन सिद्धांतों को अपनाएंगे और कैसे उत्तरदायित्व निभाएंगे, यह हम सभी के लिए चुनौतीपूर्ण प्रश्न है।
इसी संदर्भ में, उनके आर्थिक नीतियों की दीर्घकालिक प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
अंततः, उनकी विरासत केवल औद्योगिक विकास तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और साहसिक नेतृत्व की भी है।