भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

जब हम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, उन्हीं दशकों की लड़ाई है जिसमें भारत ने औपनिवेशिक शासक ब्रिटिश राज से आज़ादी हासिल की. इसे अक्सर स्वातंत्र्य संघर्ष कहा जाता है, लेकिन इसका अर्थ सिर्फ सैन्य प्रतिरोध नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक बदलावों का समुच्चय है। इस संघर्ष के दिल में कई प्रमुख व्यक्तित्व और विचारधाराएँ बसी थीं, जिनमें से महात्मा गांधी, आहेंसा को मुख्य हथियार बनाकर स्वतंत्रता की राह पर चलने वाले नेता का नाम सबसे उजागर होता है। गांधीजी ने अहिंसात्मक आंदोलन, बिना हिंसा के सत्ता को चुनौती देने की रणनीति को अपनाया, जिससे पीढ़ियों को नयी राह मिली।

स्वतंत्रता संग्राम कई चरणों में बंटा था: 1857 का प्रथम विद्रोह, सामाजिक जागरूकता हेतु आरंभिक संगठनों जैसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, और 1905‑1911 की बंटवारा नीति के खिलाफ लड़ाई। प्रत्येक चरण में अलग‑अलग लक्ष्य और साधन थे, पर सभी ने एक ही सिद्धांत को दोहराया – "स्वराज" यानी आत्म‑शासन। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जो 1885 में स्थापित हुई, ने धीरे‑धीरे आधुनिकीकरण के साथ लोकतंत्र के मॉडल को भारत में लाया। इस पार्टी में बुनियादी अधिकार, भूमि सुधार और शिक्षा की दिशा में काम करने वाले कई नेता उभरे, जैसे बाल गंगाजली, लाला लाजपत राय और बाद में नेहरू, सुभाष चंद्र बोस। इन सभी ने स्वतंत्रता की दिशा में विभिन्न तरीकों से योगदान दिया, चाहे वह असहयोग आंदोलन हो, भारत छोड़ो आंदोलन हो, या विदेश में लूटे गए हथियारों की पुनः प्राप्ति की कोशिश।

स्वतंत्रता का सामाजिक प्रभाव और आज के भारत में इसका प्रतिबिम्ब

जब भारत ने 1947 में आज़ादी प्राप्त की, तो स्वतंत्रता संग्राम का सामाजिक प्रभाव भी साथ आया। महिलाओं ने सविनय हमेंन से लेकर कस्तूरीबाई नगर, अमृत कौर तक हर स्तर पर हिस्सा लिया, जिससे महिला सशक्तिकरण की नींव रौप थी। ग्रामीण क्षेत्रों में किसान आंदोलन, जैसे चम्पारण सत्याग्रह, ने आर्थिक नीतियों को रीशेप किया और आज के कृषि सुधारों को प्रेरित किया। शिक्षा के क्षेत्र में, घाया इनकरोसेट ने अंग्रेज़ी‑हेज को तोड़ कर मातृभाषा शिक्षा को बढ़ावा दिया, जिससे आज की बहुभाषी भारतीय पहचान बनी। साथ ही, स्वतंत्रता संग्राम ने विभिन्न धर्म‑समुदायों को एकजुट किया; इससे आज की बहु-धर्मीय लोकतंत्र की धारा मजबूत हुई।

आज जब हम स्वतंत्रता के 78 साल बाद भारत की प्रगति देखते हैं, तो यह समझना ज़रूरी है कि वह किस विचारधारा से बना था। स्वतंत्रता संग्राम ने "न्याय, समानता और बंधुता" को संविधान में पनपाया, और आज के सामाजिक सुधार, डिजिटल विकास, और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की बढ़ती भूमिका इन मूल्यों पर नींव रखती हैं। चाहे आप इतिहास के छात्र हों या सामान्य पाठक, इस संग्राम की जड़ें समझना आपको वर्तमान की चुनौतियों को बेहतर ढंग से देखना सिखाएगा।

नीचे आप विभिन्न लेख, फ़ीचर और विश्लेषण पाएँगे जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अलग‑अलग पहलुओं को उजागर करते हैं – अहिंसा की रणनीति, राष्ट्रीय कांग्रेस की भूमिका, महिलाओं की भागीदारी, और सामाजिक‑आर्थिक बदलाव। इन लेखों को पढ़कर आप न सिर्फ इतिहास को दोबारा देखेंगे, बल्कि यह भी समझ पाएँगे कि आज के भारत को रूप देने वाले प्रमुख विचारकों की सोच आज भी कितनी प्रासंगिक है।

भगत सिंह का जन्मदिन: 27 सितंबर को याद किया गया वीर साहस

भगत सिंह का जन्मदिन: 27 सितंबर को याद किया गया वीर साहस

27 सितंबर को शहीद‑ए‑आज़म भगत सिंह का जन्म दिवस मनाया गया। 1907 में जन्मे इस युवा क्रांतिकारी ने अंग्रेज़ों के खिलाफ सरकाेज़ी लड़ाई लड़ी, जॉन सॉन्डर्स की हत्या और दिल्ली विधानसभा में बम विस्फोट जैसी घटनाओं में भाग लिया। 23 मार्च 1931 को फांसी देकर उन्होंने भारत की आज़ादी की जंग में नई रोशनी जलाई। उनका 118वाँ जन्मजश्न हाल ही में लाहौर में भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के तहत आयोजित हुआ, जहाँ भारत‑पाकिस्तान दोनों तरफ से सम्मान के प्रस्ताव रखे गए। इस लेख में उनके जीवन, कार्यों और वर्तमान में उनके स्मरण समारोह की पूरी झलक है।

Abhinash Nayak 28.09.2025