हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था: भारत में स्थायी ऊर्जा की नई दिशा

जब बात हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था, एक ऐसी प्रणाली है जहाँ हाइड्रोजन को ऊर्जा के मुख्य स्रोत के रूप में उपयोग किया जाता है, जिससे फॉसिल ईंधन पर निर्भरता घटती है. इसे अक्सर हाइड्रोजन‑आधारित ऊर्जा प्रणाली कहा जाता है, और यह नवीकरणीय बिजली, इलेक्ट्रोलिसिस और इंधन‑सेल तकनीक से जुड़ी होती है.

हाइड्रोजन की उत्पत्ति दो मुख्य तरीकों से होती है: इलेक्ट्रोलिसिस, विद्युत के माध्यम से पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करने की प्रक्रिया और स्टीम मीथेन रीफ़ॉर्मिंग, प्राकृतिक गैस से हाइड्रोजन निकालने की तकनीक. जबकि इलेक्ट्रोलिसिस को नवीकरणीय ऊर्जा‑स्रोत (सौर, पवन) के साथ जोड़कर ग्रीन हाइड्रोजन कहा जाता है, स्टीम मीथेन रीफ़ॉर्मिंग अभी भी ग्रे हाइड्रोजन का प्रमुख स्रोत है। भारत में सौर‑विद्युत क्षमता तेज़ी से बढ़ रही है, इसलिए ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का भविष्य उज्जवल है.

इंधन‑सेल, भंडारण और वितरण – हाइड्रोजन की संवधन कड़ी

इंधन‑सेल, ऐसी तकनीक जो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की रासायनिक प्रतिक्रिया से सीधे विद्युत उत्पादन करती है हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था का हृदय है। ट्रांसपोर्ट सेक्टर में इलेक्ट्रिक बैटरियों की तुलना में फुर्तीले रेंज और तेज़ रिफ्यूलिंग समय की वजह से इंधन‑सेल कारें, बसें और दोपहिया वाहन लोकप्रिय हो रहे हैं। भारत के कई स्टार्ट‑अप अब 500 किमी से अधिक रेंज वाली फ्यूल‑सेल बसें चलाने की तैयारी में हैं। भंडारण का मुद्दा अक्सर गड़बड़ माना जाता है, परन्तु हाई‑प्रेशर टैंक (700 बार) और लीक्टिक एंजेलिक नैनो‑स्ट्रक्चर वाले सॉलिड‑स्टोरेज में हाल के वर्ष में बड़ी प्रगति हुई है। इन तकनीकों ने हाइड्रजन को शहर‑केन्द्रित वितरण नेटवर्क में आसानी से जोड़ दिया है। इस तरह, एकीकृत सिस्टम – उत्पादन, भंडारण, इंधन‑सेल – हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था को व्यावहारिक बनाता है.

समग्र रूप से, हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था तीन प्रमुख सिद्धांतों पर चलती है: (1) सौर‑पवन जैसे नवीकरणीय स्रोतों से ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन, (2) कुशल इंधन‑सेल‑आधारित उपयोग, और (3) कार्बन उत्सर्जन में सिटी‑लेवल कट। पहले सिद्धांत का मूलभूत कार्य‑वाक्य है “इलेक्ट्रोलिसिस + नवीकरणीय विद्युत = सुव्यवस्थित हाइड्रोजन” और दूसरा “इंधन‑सेल + ऊर्जा = सीधा बिजली”. ये दो पैराग्राफ़ स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि कैसे हाइड्रोजन उत्पादन, इंधन‑सेल और सतत ऊर्जा आपस में जुड़ी हैं।

भारत के ऊर्जा लक्ष्य 2030 तक नेट‑ज़ीरो बनाते समय, हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था को राष्ट्रीय नीति में शामिल किया गया है। प्रधानमंत्री सरकार ने राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन के तहत प्रतिबद्धता की घोषणा की है: 2030 तक 5 मेटर टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन, प्रमुख औद्योगिक क्लस्टर (गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु) में हाइड्रोजन‑इंधन‑सेल इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाना, और परिवहन में फ्यूल‑सेल वर्टिकल को उन्नत करना। ये योजना न केवल आयात‑ऊर्जा पर निर्भरता घटाती है, बल्कि नई रोजगार सृजन और तकनीकी नवाचार को भी गति देती है.

हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था की सफलता कई सहायक घटकों पर निर्भर करती है। पहला, नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन की निरंतर बढ़ोतरी; दूसरा, इलेक्ट्रोलिसिस यूनिट की लागत‑प्रभावशीलता, जो अब $300/kW से नीचे गिर चुकी है; तीसरा, नीति‑समर्थन जैसे कर‑छूट, सब्सिडी और मानकीकृत नियम। अंत में, सार्वजनिक‑निजी साझेदारी (PPP) के माध्यम से बड़े‑पैमाने पर हाइड्रोजन हब बनाना, जैसे कि महीनावती हाइड्रोजन हब, जिससे पेट्रोकेमिकल, स्टील और रिफाइनरी सेक्टरों में हाइड्रोजन का उपयोग हो सके.

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Abhinash Nayak 8.10.2025